ॐ गणेशाय नमः
आज बात करते है पहले भाव की, जन्म के समय जो भाव राशि पूर्व दिशा में मिली वह पहला भाव कहलाया, जो ग्रह उस दिशा में थे वो पहले भाव में गए हुए माने गए।
पहला भाव उदय भाव है मेनिफेस्ट हुआ बच्चा, नाम पहचान जो भी मिली वो पहले भाव से देखी,
पहली पहचान उसका नाम, दूसरी पहचान उसका रूप, तीसरी पहचान ज्ञान और चौथी पहचान उसके कर्म , हालाकि कर्म का दसवां भाव और ज्ञान का पांचवा भाव माना गया है लेकिन पहले भाव का भी महत्वपूर्ण रोल है।
स्वभाव( personality) प्रकृति भी पहला भाव है। पूरा शरीर भी पहला भाव और शरीर के भागो में सिर भी पहला भाव। इसे लग्न भी कहते है।
लग्न में जो राशि होगी उसके अनुसार हमारा शरीर, पर्सनेलिटी होगी, लग्न में जो ग्रह होगा उसके स्वभाव के अनुसार हमारा स्वभाव होगा, और लग्नेश जिस भाव में होगा उस भाव के गुण हममें होगे, उसी भाव पर हमारी सारी ऊर्जा केंद्रित होगी।
लग्न मैं को दर्शाता है अगर लग्न लग्नेश कमज़ोर हुआ तो बीमारी, अंग भंग और बाल अरिष्ट योग, हो सकते है यदि अन्य योग भी ऐसे हुए तो।
जब भी लग्न लग्नेश की दशा आएगी तब शरीर संबंधी , स्वभाव संबंधी इवेंट्स जरूर होगे अच्छे या बुरे अन्य कारक पर निर्भर।
काल पुरुष कुंडली में सूर्य उच्च का, मंगल स्वामी और शनि नीच का होता है।
पहले भाव का कारक ग्रह मंगल देह कारक, सूर्य आत्मा कारक और गुरु जीव कारक होगे।
लाल किताब के अनुसार पहला घर सूर्य का पक्का घर है ।
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